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________________ अहिसा] [१३३ इन जीवो के प्रति सदा अहिंसक वृत्ति से रहना। जो कोई मन, वचन और काया से अहिंसक रहता है, वही आदर्श संयमी है । अजयं चरमाणो उ, पाणभूयाइं हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥३७॥ असावधानी से चलनेवाला मनुष्य त्रस-स्थावर जीवो की हिंसा करता है, जिससे कर्मबन्धन होता है और उसका फल कटु होता है। अजयं चिट्ठमाणो उ, पाणभूयाहिं हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडयं फलं ॥३८॥ असावधानी से खड़ा रहनेवाला पुरुष त्रस-स्थावर जीवो की हिंसा करता है, जिससे कर्मबन्धन होता है और उसका फल कटु होता है। अजयं आसमाणो उ, पाणभूयाइं हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ॥३६॥ असावधानी से बैठनेवाला मनुष्य स-स्थावर जीवो की हिंसा करता है, जिससे कर्मबन्धन होता है और उसका फल कटु होता है । अजयं सयमाणो उ, पाणभूयाइं हिंसइ । बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडयं फलं ॥४०॥ असावधानी से सोनेवाला पुरुष त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा करता है, जिससे कर्मवत्धन होता है और उसका फल कटु होता है।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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