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________________ अहिंसा [१२५ समभाव ने देगे। यह रिनी को प्रिय और किसी को अप्रिय न बनाए। डहरे य पाणे बुडू य पाणे, ते आत्तओ पासइ सबलोए ॥१॥ [सूः ध्रु० १, अ० १२, गा० १८] मुमुक्षु छोटे और बडे समस्त जीवो को आत्मानुरूप माने । पुढ़वीजीवा पुढो सत्ता, आऊजीवा तहागणी । वाउजीवा पुढो सत्ता, तणरुक्खा सवीयगा ॥१६॥ अहावरा तसा पाणा, एवं छक्कायं आहिया । एयावए जीवकाए, नावरे कोइ विज्जई ॥ १७ ॥ सबाहिं अणुजुतीहिं, मईमं पडिलेहिया । सम्बे अक्कन्तदुक्खा य, अओ सन्चे न हिंसया ॥१८॥ [सू० श्रु० १, अ० ११, गा० ७-८-६ ] पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और बीजयुक्त तृण, वृक्ष आदि वनस्पतिकाय जीव अति सूक्ष्म है। (ऊपर से एक आकृतिवाले दिखाई देने पर भी सव का पृथक्-पृथक् अस्तित्व है।) उक्त पांच स्थावरकाय के अतिरिक्त अन्य त्रस प्राणी भी हैं। ये छह षड्जीवनिकाय कहलाते है । संसार मे जितने भी जीव हैं, उन सब का समावेश इन षनिकाय मे हो जाता है। इनके अतिरिक्त अन्य कोई जीव-निकाय नही है।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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