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[श्री महावीर-वचनामृठ पणया वीरा महावीहिं ।।४||
[आ० ध्रु. १, २०१, २०३] कुशल पुरुप परोपह सहन करने मे सूर होते हैं और अहिंसा के प्रशस्त पथ पर चलनेवाले होते हैं। अदुवा अदिन्नाटाणं ॥॥
[आ० ध्रु. १, अ० १. उ०३] जीवों की हिंसा करना यह एक प्रकार का अदत्तादान है यानी चोरी है। तं से अहियाए, तं से अबोहिए ॥६॥
[आ०६० १, अ० १, उ०१] पृथ्वीकायिक ( आदि ) जीवो की हिंसा, हिंसक व्यक्ति के लिए सदा अहितकर होती है और अवोत्रि ( अज्ञान-मिथ्यात्व) का मुल्य कारण बनती है ! आयातुले पयासु ॥७॥
[सू० श्रु०१, ०११, गा०३] प्राणियों के प्रति आत्मतुल्य भाव रखो। सबाहिं अणुजुत्तीहि मतिमं पंडिलेहिया । सम्बे अक्वन्तदुक्खाय, अओ सब्बे न हिंसया ||८||
[सूः १० १, म० ११, गा०६] बुद्धिमान् पुरुष को सर्व प्रकार की युक्तियों से सोच-विचार कर तथा सभी प्राणियों को दुःख अच्छा नहीं लगता, इस तथ्य को ध्यान मे रखकर किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिये।