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________________ धारा : ११ : अहिंसा नाइवाइज किंचण ॥१॥ [ आ० श्रु० १, अ० २, उ० ४ ] किसी भी प्राणी की हिंसा न करो । सव्वे पाणा पियाउया सुहसाया दुक्खपडिकूला अपियवा पियजीविणो, जीविकामा सच्चेसिं जीवियं पियं ||२|| [ भा० ० १, अ० २, ४०३] ( क्योकि ) सभी प्राणियों को अपना आयुष्य प्रिय है, सुख अनुकूल है और दुःख प्रतिकूल है । वच सभी को अप्रिय लगता है और जीना सब को प्रिय लगता है । जीवमात्र जीवित रहने की -कामना वाले हैं । सब को अपना जीवन प्रिय लगता है । एस मग्गो आरिएहिं पवेइए, जहेत्थ कुसले नोवलिंपिज्जासि ||३|| [ आ० श्रु० १, भ० २, उ०२] आर्य महापुरुषों द्वारा अहिंसा के इस मार्ग का कथन किया गया है । अतः कुशल पुरुष भूलकर भी अपने को हिंसा से लिप्त न करे ।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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