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धारा:८:
मोक्षमार्ग नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एयमग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सोग्गई ॥१॥
[उत्त० अ० २८, गा०३] ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप [ये मोक्षमार्ग है। ] इस मार्ग पर चलनेवाले जीव सुगति में जाते हैं।
विवेचन-सभी मुमुक्ष मोक्षप्राप्ति की अभिरुचि रखते हैं, परन्तु मोक्ष की इस अवस्था पर पहुंचने का सच्चा विश्वास पात्र मार्ग कौनसा है ? यह जानना आवश्यक है। इसीलिये यहां स्पष्ट किया गया है कि ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप की यथार्थ आरावना ही मोक्षप्राप्ति का सच्चा मार्ग है। इस मार्ग का अनुसरण करनेवाले अवश्य सुगति में अर्थात् मोक्ष में जाते है। .
नाणेण जाणई भावे, दंसणेण य सद्दहे । चरित्तेण निगिण्हाइ, तवेण परिसुज्झई ॥२॥
- [उत्त० म० २८, गा० ३५] ज्ञान से पदार्थ जाने जा सकते हैं, दर्शन से उस पर श्रद्धा होती