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करत ह।
दुर्लभ संयोग] खेत्तं वत्थु हिरणं च, पसवो दास-पोरुसं । चत्तारि कामखंधाणि, तत्थ से उववज्जइ ॥१७॥ ___ उक्त स्वर्ग मे से च्यवित देव जहाँ क्षेत्र (खुली जगह-बागबगीचा आदि ), वास्तु ( मकान, महल आदि), हिरण्य ( सोना, चांदी, जवाहरात, आदि) और पशु तथा दास-दासी रूपी चार कामस्कन्ध अर्थात् सुखभोग की सामग्री हों, वहाँ जन्म धारण करते है। मित्तवं नाइवं होइ, उच्चागोते य वण्णवं । अप्पायके महापन्ने, अभिजाय जसो बले ॥१८॥
[ऊपर चार काम-स्कन्वरूपी एक अग का निर्देश किया गया है। शेष अन्य नौ अगो का वर्णन इस गाथा मे किया गया है ] (२) उसके अनेक सन्मित्र होते है, (३) उसके बहुत से कुटुम्बिजन होते है, (४) वह उत्तम गोत्र मे जन्म लेता है, (५) सौन्दर्यशाली होता है, (६) व्याधि-रहित होता है, (७) बुद्धि-सम्पन्न होता है, (८) विनयी होता है, (६) यशस्वी होता है और (१०) बलवान् भी होता है। इस प्रकार उसे दस अग की प्राप्ति होती है।
भोच्चा माणुस्सए भोए, अप्पडिरूवे अहाउयं । पुर्वि विसुद्ध सद्धम्मे, केवलं बोहि बुझिया ॥१६॥
आयुष्य के अनुसार मनुष्य योनि के उत्तमोत्तम भोग भोगकर तथा पूर्वभव मे किये हुए शुद्ध धर्म के आचरण के फलस्वरूप वह सम्यक्त्व की प्राप्ति करता है।