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________________ ५०] [श्री महावीर वचनामृत विवेचन-कर्मरूप में परिणत होने योग्य पुद्गल की एक प्रकार की वर्गणा को कार्मण-वर्गणा अथवा कर्मपुद्गल कहा जाता है । पुद्गल को वर्गणाएं अनेक प्रकार की होती है, उनमे औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तंजस, भाषा, श्वासोच्छवास, मन और कार्मण-इन नामो वाली ८ अयोग्य +८ योग्य यो सोलह वर्गणाएं विशेषतः समझने योग्य है। वे इस प्रकार है : १: औदारिक शरीर के लिये नही ग्रहण करने योग्य महावर्गणा । २: औदारिक शरीर के लिए ग्रहण करने योग्य महावर्गणा । ३ : औदारिक-वैक्रिय शरीर के लिये नही ग्रहण करने योग्य महावर्गणा। ४: वैक्रिय शरीर के लिये ग्रहण करने योग्य महावर्गणा । ५ : वैक्रिय-आहारक गरीर के लिये नही ग्रहण करने योग्य महावर्गणा। ६ : आहारक शरीर के लिये ग्रहण करने योग्य महावर्गणा । ७: आहारक-तैजस शरीर के लिये ग्रहण न करने योग्य महावर्गणा। ८: तेजस शरीर के लिये ग्रहण करने योग्य महावर्गणा।। ६ तेजस शरीर और भाषा के लिये ग्रहण नही करने योग्य महावर्गणा। १० : भाषा के लिये ग्रहण करने योग्य महावर्गणा । ११ : भाषा और श्वासोच्छवास के लिये ग्रहण न करने योग्य महावर्गणा।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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