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________________ ४६] [श्री महावीर वचनामृत अर्थात् गतिमान् हैं और मनुष्यलोक के बाहर स्थिर है अर्थात् गति नही करते। वेमाणिया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । कप्पोवगा य बोधवा, कप्पाईया तहेव य ॥५३॥ [उत्त० अ० ३६, गा० २०६] वैमानिक देव दो प्रकार के है :-(१) कल्पोत्पन्न और (२) कल्पातीत । कप्पोवगा य वारसहा, सोहम्मीसाणगा तहाँ । सणंकुमार-माहिंदा, वंभलोगा य लंतगा ॥५४॥ महासुक्का सहस्सारा, आणया पाणया तहा । आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥५॥ [उत्त० अ० ३६, गा० २१०-११] कल्पोत्पन्न वैमानिक देव वारह प्रकार के हैं :-(१) सौधर्म (२) ईशान, (३) सनत्कुमार, (४) माहेन्द्र, (५) ब्रह्म (8) लातक, (७) महाशुक्र, (८) सहलार, (६) आनत, (१०) प्राणत, (११) आरण और (१२) अच्युत। कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । गेविजाणुत्तरा चेव, गेविजा नवविहा तहिं ॥५६|| [उत्त० अ० ३६ गा० २१ ] कल्पातीत देव दो प्रकार के वताये गये हैं:-(१) ग्रंवेयक और (२) अनुत्तर।
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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