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________________ ४.] [श्री महावीर-वचनामृत इंदगोवमाझ्या, ऽणेगहा एवमायओ ॥ लोगेगदेसे ते सम्बे, न सम्वत्थ वियाहिया ॥३१॥ [उत्त० अ० ३६, गा० १३६ से १३६ ] तीन इन्द्रियवाले जीव दो प्रकार के कहे गये हैं:-पर्याप्त और अपर्याप्त । इनके भेद मेरे द्वारा सुनो। ___ कुथु, चीटी, डास, उत्कल, उदई, तृणाहारक (घास मे होनेवाले) काष्ठाहारक (लकड़ी मे होनेवाली, घुन ), मालुका, पत्राहारक ( पत्तों मे होनेवाले), कासिक (कपास आदि मे होनेवाले), अस्थिजात (गुटली-गुटले आदि मे होनेवाले ), तिन्दुक, त्रपुप. मिंजग, शतावरी गुल्मी, इन्द्रकायिक आदि। ___ इन्द्रगोप (गोकुलगाय ) आदि तीन इन्द्रियवाले जीव अनेक प्रकार के हैं, वे लोक के एक भाग मे कहे गये हैं, न कि सर्वत्र । चउरिंदिया उ जे जीवा, दुविहा ते पकित्तिया । पजत्तमपञ्जत्ता, तेसिं भेए सुणह मे ॥३२॥ अंधिया पुत्तिया चेव, मच्छिया मसगा तहा । भमरे कीड-पयंगे य, ढिकुण कुंकण तहा ॥३३।। कुकुडे सिंगिरीडी य, नंदावते य विछिये । डोले य भिंगिरीडी य, विरिली अच्छिवेहए ॥३४॥ अच्छिले माहए अच्छिरोडए विचित्तचित्तए । उहिंजलिया जलकारी य, तंनिया तंबगाइया ॥३॥
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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