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________________ [श्री महावीर-वचनामृत साधारण वनस्पति के भी अनेक प्रकार होते हैं। यहाँ आलू, ___ मूली, शृगवेर आदि के ही नाम दिये गये है, ये सव कन्द हैं। आलू अर्थात् आलू-कन्द । मूली प्रसिद्ध है। शृगवेर अर्थात् अद्रक । तात्पर्य यह है कि सभी प्रकार के कन्दो की गणना साधारण वनस्पति मे करनी चाहिये। इसके अतिरिक्त समस्त वनस्पतियो के अकुर, कोंपले, कोमल फल तथा जिसके दाने और शिराएं गुप्त हो, उसकी गणना भी साधारण वनस्पति मे करनी चाहिये । साधारण वनस्पति को अनन्तकाय भी कहते हैं क्योंकि उसके एक सूक्ष्म गरीर मे अनन्त जीव होते है। तेउ वाऊ अ बोधवा, उराला य तसा तहा । इच्चेए तसा तिविहा, तेसिं भेए सुणेह मे ॥१८॥ [उत्त० अ० ३६, गा० १०७] त्रस जोव तीन प्रकार के हैं :-तेजसकायिक, वायुकायिक और प्रधान त्रसकाय। इनके भेद मुझ से सुनो। विवेचन-तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव एकेन्द्रिय है, किन्तु वे हिलने-डुलनेवाले होने के कारण उनकी गणना त्रस मे की गई है। जो जीव भयग्रस्त होकर हिलने-डुलने लगते हैं, वे प्रधान त्रस कहलाते हैं। इन तीनों के भेद वाद मे कहे जायेंगे । दुविहा तेऊजीवा उ, सुहमा वायरा तहा । पजत्तमपज्जत्ता, एवमए दुहा पुणो ॥१६॥
SR No.010459
Book TitleMahavira Vachanamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Shah, Rudradev Tripathi
PublisherJain Sahitya Prakashan Mandir
Publication Year1963
Total Pages463
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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