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________________ गावत तीर्थो अनादिना छे अने अनत काल पर्यत यथावत् रहेवाना । अने स्थापेला तीर्थो ज्या सुधी जैन धर्म अने एना प्रचारक महापुरूषो रहेशे त्यासुधी ए तीर्थो वृद्धिने पामता, अनेकोना उद्धारनु पुप्टावलवन बनी रहेवाना । शास्त्रमा कथन छे के, सात क्षेत्रमा धननो सद्व्यय करवा माटे उत्तम क्षेत्र कोई होय तो ते तीर्थज छे पुज्यपाद कविराज वीरविजयजी महाराज पुजानी ढाळमा फरमावे छे के, 'परिग्रहथी होय अधिकू, तो तीर्थे जइ वावरो रे लोल', एथी पचम कालमा भव्योने स्व-उद्धार करवा प्रवल निमित्त कोइपण होय ते तीर्थ छे, अने ए तीर्थमा अनेक शुभ भावनाओनी प्रेरणा सहज सापडे छे, जगम तीर्थ ए मुनि भगवतो छे, जेओ पदयात्रा करे छे, विहार करीने ज्या ज्यां जाय त्या तीर्थकर भगवाननी वाणी श्रवण करावी हजारो भव्य प्राणिओने मार्गस्थ बनावे छे तेमज तेओना सयम, आकरा तप, जप अने ध्यान वदन करवावाळाओ पर अद्भुत प्रभाव प्रसारे छे, तेमज जेवी शमरस वर्षती देशना अमृत सभाळावी, मिथ्यात्वनु निकदन काढी सम्यक्त्वना सुवीजोनू आरोपण करे छे तीर्थभक्ति, तीर्थयात्रा, तीर्थध्यान, तीर्थोद्धार आ सघळु आत्मकल्याण साधवानु श्रेष्ठ साधन छे 'तारयतीनि तीर्थ', भवथी तारे ए तीर्थ कवाय दक्षिण पथमा आवेला अनेक पावन तीर्थोमा श्री कुभोजगिरी' पण एक प्राचिन, पवित्र अने सर्व विश्रुत तीर्थ छे हुए तीर्थनी यात्रा करवा भाग्यशाली नथी वन्यो, पण मारा तारक गुरूदेव आचार्य भगवत श्री कुभोजगिरी शताब्दि महोत्सव श्रीमद्विजय लब्धिसूरीश्वरजी महाराजश्री ए तीर्थनी पवित्र यात्राए गयेला छे अने तेओश्रीनी पवित्र निश्रामा त्या केटलाक प्रशंसनीय, अनुमोदनीय शुभ कार्यो सर्जाया छे, जेनो विशुद्ध परिचय अहीं आपको ए उचितताथी भरचक गणाशे महाराष्ट्रनी मगलमय भौम पर जैन धर्मनु एक कालमासाम्राज्य प्रवर्ततु हतु, पुर्वधर भद्रबाहु स्वामी जेवा पुण्याश्लोक महापुरुषो पण आ पुण्य भूमिनाज जन्मेला रत्नो हता ने । तर्क मूर्तिओ अने ज्ञाननिधानो अनेक आचार्य भगवतो आ भूमि पर विजय विहारो करीने, जिनवाणीनु भव्योने पान करावी जैन दर्शनना तत्वोना परम श्रद्धेयापन्न बनावता 1 आ प्रदेशनो श्रावक गण पण श्रद्धाळु भक्तिसपन्न, समृद्ध अने उदार प्रकृतिवाळो छे । आजे जे पवित्र अने तारक श्री कुभोजगिरी तीर्थनी शताब्दि उजवाई रही छे ते तीर्थ प्राचीन छे, पवित्र वातावरणथी सरभर छे, रम्य वन प्रदेश अने पहाडीओनी मनोरजन प्रकृती सौदर्यथी प्रेक्षकोने भव्य भावनाओयी ओतप्रोत वनावे छे अनेक स्थलोना यात्रालुओ भावोमिथी प्रेराईने आ तीर्थपर स्वराजित तारक तीर्थकर देवोनी यात्रा करवा आवे छे, अने स्वप्रयास, धनव्यय, पर्वतारोहणने ते सफल माने छे वि स २००५ नी सलुणी सालमा प पू आचार्य भगवत श्रीमद्विजय लब्धिसूरिश्वरजी महाराजा स्व-विशाल परिवार साथ कुभोजगिरी उपर आरोहण करीने, जाणे शुभ भव परिणतीनी उच्च श्रेणीपर न चढया होय एम आत्मामा मानीने भव्य अने आदर्श गगनचुंबी जिनालयमा विराजमान श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ भगवाननी पुण्य प्रतिमाना दर्शन चैत्यवदन करीने कृत [ ९५
SR No.010457
Book TitleKumbhojgiri Jain Shwetambar Tirth Shatabdi Mahotsava Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKubhojgiri Tirth Committee Kolhapur
PublisherKumbhojgiri Tirth Committee Kolhapur
Publication Year1970
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size3 MB
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