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________________ कहोगे हमको नहीं किया पहिला। मुरिदों को अकल फिर आवे ॥ गुरुजी ॥६॥ अगर तुमारी है होशियारी। भक्ती करो गुणवत्तो की भारी ॥ हीरालाल कहे ये अकल हमारी । आलीजासे आलीजा पद पावे॥ गुरुजी॥७॥ ॥ पंद-सच्चामित्र ॥ गजल-कवाली ॥ मित्रका भरोसा भारी । वोही जो काम आते हैं। मुनासिबसमजके दिलको।जानसेजानलगाते हैं। मि? होवे कोइ बचनका सूरा । उनोका भागहै पूरा ॥ हजारों कोस भी जावे । वहां भी काम आते हैं।मिर मित्र वो दुःख मिटावे । सजन पन करके बतलावे॥ कृष्णधातकी खन्ड गये । द्रोपती लेकर आते हैं।मि३ भाइ लक्ष्मण के कारण । भरत उसी वक्त में धाया॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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