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________________ (६१) मिलत-किसीके हुकमपर चलते यार ।। अगर ॥१॥ भृले क्यों योवन के जोर घमन्ड । भृले क्यों देख दोलत प्रचन्ड ।। भूले क्यों देख विरादर अखन्ड । होवेगा तेरे सिरपर यम दन्ड ॥ दोहा-क्यो भूला गुल वदनपर।गजरथ तेज तुरंग।। राज पाट और जमी जेवर।क्या क्या आते संग॥ मिलत-बन्दे क्यों होते हो अन्ये यार ॥ अगर ॥२॥ घमन्डी हुवे केइ सरदार। उन्हों का पता नपाया यार। वाया तुमको वारम्बार । होगा दिल्यामतके रोज इजहार ॥ दोहा-जज कोर्ट के बीच में । होगा वहां इन्साफ ।। हाकिम हुक्म वहां गर्मागर्म है। क्या तुम दोगे जवाब। मिलत-लगे क्या वहांपर तुम्हारे बाप ॥ अगर ॥२॥ आखिर अंतः यम आयाही खलास । पहोंचना
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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