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________________ (४३) मिलत्-उन्होंको कोई नहीं छीते जहान॥ बंदगी॥३॥ सिखाया सुत्र अर्थ और पाट । बताइ मोक्ष जा नेकी वाट ॥ उन्होसे रखेजो दिलमें आंटकपटकी भरी गांठमें गांठ दोहा-मोका होवे कोइ कामका । टल्ला लहे तुरंत ॥ पडेल बैल गलियार गधा जिम । चले न सीधा पंथ ।। मिलत-हसरत सहेत है अजान ॥ बंदगी ॥ ४॥ नुगरा करे मोक्षमें वासाकभी नहीं होय मोक्षके पास उसके कर्मसे उसका नाश । फल जिम लगे जं गलमें वांस ॥ दोहा-कण कुन्डको त्यागकर । सूवर भिष्टा खाय ॥ सडे कानके श्वान ज्यों । शास्त्रमें बतलाय॥ मिलत-मिले क्या मान और सन्मान ॥वंदगी॥५॥ अपनी हेसीयतके प्रमानावंदगी करो पकड दो कान
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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