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________________ (३८) ॥ ३ ॥ सीधी राह लगाते है || ज्ञान ॥ क्याइसतनकालाडलडाया | अतरअर्गचा लगाया है || कंठी डोरा पहन गले में | चले निरखता छाया है ॥ साधूसंत को देखके दुर्जन | गंडक ज्यों घुराया है | एसे अज्ञानी हारी नरदेह | जिसे मुशकिल से पाया है | छे कायाकी रक्षा करना । सूत्रों से दिखलाते हैं | ज्ञानी. ॥ तजोत्रियाका संग झुंठा । जिनने केइ को कियेकंगाल ॥ जो नर हैं अन्धे उनको । नरकके अंदर दिये हैं डाल ॥ दानदया सत्यशील आराधो । यहीरचा है स्वर्गका ख्याल सायरका गाना सुनाते। चतुरनको यों हीरालाल || रत्नचंदजी गुरू ज्ञान सिखाया | उनको शीस झुकाते हैं. ॥ ज्ञानी ॥ 11 8 11 11 4 11 1
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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