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________________ ( ३६ ) अजलसे तुमही बचावो | तुम्हारे ० ॥ सज्जन ॥२॥ अगरचे हो तुझी दाता । वक्षोहो हमको सुखसाता ॥ वक्तपर आशान आवोगे | तुम्हारे० || सज्जन ॥ ३ ॥ चन्द रोजके मांही । मिलूंगा तुमसे मैं आई ॥ हमभी तुम जैसे होवेंगे। तुम्हारे० ॥सज्जन ॥ ४ ॥ वही दोस्त है मिंता । मिटावे दिलकी जो चिन्ता || कैसे तुम छोड़ जावोगे। तुम्हारे. ॥ सज्जन ॥५ ॥ हजरी हुक्मसे गोया । सभीलो शिवपुरके जोया || हीरालाल ऐसा गावेगा । तुम्हारे० ॥ सज्जन ॥ ६ ॥ ॥ उपदेशी लावणी - अधर वरणोंमे - चाल लंगडी. ॥ सुणो जिकर यह इसीजक्तका । सद्गुरुराहदरसाते हैं। ज्ञान कीझडियां लगाकर तुर्तही आनन्द आते हैं। आं ॥ देखो चतुर नरदिलके अन्दरा कौन तुझेहैतारनहार ॥ यह है सज्जन सारेइन्हों का क्या तुझको आताइतबार।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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