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________________ (२१) अहो विरादर तुम क्यों भूले । क्यों करते हो वेट । मिलत-समजलो इसेहीमां और वाप॥ कटत हे॥४॥ चले नहींकोईकियातोफानाटलेसवग्रहगोचरमशान।। सवहीविद्यामंत्रदत्तदान । करोनवकारमंत्रकी ठान ।। दोहा-योही मंत्र त्रिकाल संध्या।होत मनोरथ सिद्ध। हीरालाल नवकार मंत्रसे । पावोगा बहु रिद्ध ॥ मिलत-सुणायो ज्ञान गुरुजी आप ॥ कटत है ।।५।। ॥ गुरु गुण स्तवन ॥ राग-महाड ॥ हो गुरुदेव तुम्हारी मृरत प्यारी । मोहनगारी लागे छेजी राज ॥ आं० ॥ पंच महावृत निर्मळ किरिया । घरिया उज्वल ध्यान ॥ सागर जेसा गम्भीर गुणाकर । जाणे सकल जहान ॥ हो गुरु ।। १॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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