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________________ ( १७ ) अर्ज करूं जिनराज आपसे । तुम रक्षा के करनेवाले ॥ सेवे सुरिंदा तेज दिणंदा । दीपे जिणंदा प्रतिपाले | अक्षय पुण्य कमाया दमकती काया । कंचन वरणंदेह धरणं ॥ जय ॥३॥ रवि चन्द्रमा सभी जोतषी | भरा रहे समुद्र पानी | भूमण्डलअचल जिममेरु तवलगरहो यह जिनवाणी ॥ सदा रहोगुलजार गिरामी । भवश्वातकके हरणं । जय४ सदा देव गुरु धर्म आपकी । बनी रहो यह गुल क्यारी ॥ श्री रत्नचन्दजी महाराज राजके । जवाहरलालजी - यशधारी ॥ संवत उन्नीसो पैंसठ वर्षे । हीरालाल कहे तारणतिरणं ॥ जय ॥ ५ ॥ ॥ स्तवन श्रीवीर प्रभूके दर्शनका उत्साह || || हरी आजो मंदरिये रंग मानवाने || यह देशी || आलो आलोरे दर्शन वाहला वीरनोरे || आं० ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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