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________________ ( १६१ ) महाराज हमे कुछ शरम जो आतीजी । तुम परणो राजकुँवार हम वनवासको जातीजी ॥ यों करी छल रत्नवती वो पास पहुंची। महाराज कपटसे केइ नहीं लाजेजी । कमानतुंगी दासी आइ तुम मिलन के काजेजी॥ दोहा - परण्यो राजा हर्षसे, आयो आपके ठाम । रत्नवती की गुरुणी हुइ, दियो राजाको आराम || पट मास लग राखियो, ऐंठो खवायो कसार । गर्भ धर्यो सुख भोगतां, निपट कपटकी जार ॥ छूट-जब लावी सेलाणी सच बोल हुवा है पूरा | पियु पहेलां पहुंची नगरी उजैनी सनृरा ॥ आइ पिता आपके घर महल सन्रा । करो महोत्सव सबही प्रगट बताया पूरा ॥ मिलत- एक कागज लिखकर नृप नाम हू " 1
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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