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________________ (१५८) यह सासू सुसरा जेठ पतिका कहनमें रहनोजी ॥ दोहा-मानवति एक शेठकी, पुत्री चतुर सुजान। कला चौसट जाने सही, अमर रुप इशान ॥ जो परणो प्रीतम भनी, वरतातूं मुझआन । चार बोल पूरा करूं, तो मानवती मुझमान ॥ 'छूट-चरणोदक पावू बृषभरुप असवारी । करे ऐंठो भोजन सह सो सो गाली हमारी ॥ यह सुनी बात राजाने दिलमें धारी। इसकूँ मै परनूं देखू सभी होशियारी ॥ मिलत-फिर आय राजा प्रधानको तुरत बुलाया। महाराज व्यावकर रंग बधानाजी ॥ त्रिया ॥१॥ एक स्थंभ आवास वास कर मेली । महाराज भूप कहे तूं मुंज नारीजी । थारा बोल्या बोल संभार याद कर बात तूं थारीजी॥ मत छेडो नार नृपती छेह नहीं लीजे।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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