SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___ (१५४) पल्लीपतिपहोंचावाचल्यो,अपनीसीमपहिलेपारजी। जबमुनि उपदेशज दिया, शुस कराया चारजी। नमस्कार कर पाछो फिरियो, आयो अपने द्वारजी॥ चो-विनजानाफळनहींखानो।नृपनारकोमाताजानो॥ विनचेतायावैरीनहींहणिये।वायसमांसअभक्षगणिये॥ मिलत-एक दिन चोर संग लेकर धाडे चडियो। महाराज बखीलको रहे न समताजी ॥या ॥१॥ यह प्रति शत्रूके जोर चोर सब भागा। महाराज फिरे वो बनमें भमता जी। . नहीखायाअजान्या फलबकचूलत्यागसेडरताजी॥ और सभी चोरों ने वो फल खाया । महाराज जिनोने प्राण गमायाजी। चल गयाबंक चूल उठ घरे अधरातको आयाजी। शेर-नार सूती पर पुरुष संगे, देख चडीरीस जारजी। वैरीको मारण काजे, खैच कहाढी तरवार जी ।।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy