SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३६ ) मिलत - सोच नहीं कोई दिलके अन्दर होवे जिसकी गदीर बडी ॥ धीज ॥ ३ ॥ अग्निकुंडका हुवा जलसारा । नरनारी सब देखरा ॥ कुसुमकी वृष्टिकरी देवताः । जयश्कारसुर शब्दकिया || निकलङ्कहुवा तननिर्मल | सकल जहानमें यश लिया || दुर्जन कादिल देखघबराया। सिरमंदा सिर झुकादिया ॥ छूट - यो सील महा सुखकंद विघ्नको टाले I जो पाले निर्मल चित्त रीति से चाले || श्री रत्नचंदजी महाराज कनजेडे वाले । गुरु जवाहर लालजी गुणवंत सुमितीको पाले । मिलत - चौसर के साल भोपाल शहर में हीरालाल गाइ ज्ञान जडी ॥ धीज ॥ ४ ॥ || रामचंद्रजी की मोक्ष || लावणी - चाल दूणकी || उदय पुण्य के जोग चारित्र आवे |
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy