SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११७) छे पुत्र सुलसाघर वधिया।सोसबजिनवरफरमाया। सोलह वर्ष नंदघर रही । अहीर कृष्ण ये कहवाया। शेर-माताके पांव लागवा। आया कृष्ण महाराजजी। माताकी चिन्ता देखकर। गिरधर हुवा नाराजजी॥ हाथ जोडी मान मोडी । पूछियो विरतंतजी॥ माताने पुत्रके आगे । सबभाखियो अरहंतजी॥ छूट-माताकी चिन्ता मेटी सब गिरधारी । हुवा भ्रात आठमां जगमें बल्लभकारी ॥ महाराज नेमजीकी वाणी सुनी वृत धारी । हीरालाल कहे गजमुनिको वंदन हमारी ॥ मिलत-श्री जवाहरलालजी गुरु देव हमारा । भवसागर तारण तिरणं ॥ भद्दल ॥५॥ - पद-द्रौपदीका सत्य ॥ राजा हूं मैं कौमका ए देशी॥ वचन सुणी नारद तणो । पद्मनाभ भूपाल ।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy