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________________ (९९) मुनि एवंता आया गोचरी। कंशके महेलां मांयजी।। जीव जमा जर फिर गइ आडी।करीकु बुद्भवतलायजी भाइ तुम्हारा राज करत है। थे डोहलो घरदारजी।। एक मात और तान तुह्माग । कोनलेवेकर्मवटायजी॥ जर मुनीने ज्ञान विचारा । होतब जसा दस्थायजी॥ पुत्र नणंदका होसी सातमाश्ने देसी खूणे बेटायजी।। होनहारनहीमिटेकिसीमानामप्रसकामजलेना।तु.२॥ राजा रावणवी वहिन पापनी।बुरी सीख बतलाइ है। वेट विमाने चले गजबी। सीता लेनेसो आयनी ॥ करी करट सीताको लीथी। लंका. वागमें लायजी॥ हनुमंत उमीनीखवार की है। मीनाकोलच पायजी। गमचन्द्र लस्वारले चरिया। जब रावण वगयजी।। बान्ध लिया परिवार उसीका।वोभी नर्क लिधायजी। ऐसाहालगालुमहुवाहाचरित्रत्रियााक्याकहना।तु३ और सूत्रोंगे ईका वर्णन । रमडो चतुर सुजानजी।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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