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________________ (८९ ) पाच जनामें बैठी आगे । बात बनावे ताजे॥ धर्म क्रियामें कपट करतो। सुखियोसबमें वाजे॥फो॥२॥ धर्म उन्नती करवा सारु । कार्य करंतो लाजे॥ मृत्युक कारणव्याव वगैरा।मानबडाइ छाजे॥फो॥३॥ गर्व करी इम वोले गेहलो । बान्धू समदर पाजे ॥ कामतणोकोइअवसरआयां। पाछोतोकिमभाजे॥फोट स्वधर्मीको साज देतां । दान सुपातरियां जे ॥ हीरालालकहऐसामाणसकोकिमसुधरसीकाजे॥फो५ ॥ गजल-महमदी फरमान ॥ राग-कव्वाली.॥ सभीका प्राण बचाना। वजन किसको न करवाना। खोज दिल बीच अहो भाइ। सभी शास्त्रके मांही? महमदका जोफरमानां। कहां लिखासो भी वतलाना॥ हुक्म हजरतका वोही । तोरात अंजिल फरकानार कांटातूं लगामत किस्के । सभी दिल दर्द है जिस्को।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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