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________________ जैन पूजा पाठ सप्रह ___ पंचमेरु पूजा तीर्थंकरोंके न्हवन-जलतें, भये तीरथ शर्मदा । तातै प्रदच्छन देत सुरगन, पंचमेरुन की सदा ।। दो जलधि ढाई द्वीपमें, सब गनत-मूल विराजहीं। पूजौ अली जिनधाम-प्रतिसा, होहिं सुखदुख भाजहीं । ॐ हीं पचमेरुसम्वन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र अवतर अवतर सवौषट् । ॐ हीं पचमेरुसम्बन्धिजिनचेत्यालयस्यजिनप्रतिमासमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ । ॐ हीं पचमेस्सन्धिजिनदैत्यालयस्थजिनप्रतिमासमूह ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । अथाष्टक । चौपाई आंचलीवद्ध (१५ मात्रा) शीतलमिष्ट सुवाल मिलाय, जलसौं पूजौं श्रीजिनराय। महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥ पांचों मेरु असी जिनधाम, सब प्रतिमाको करों प्रणाम । महासुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥१॥ ॐ हीं पचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्यजिनबिम्बेभ्यो जल निर्वपामीति स्वाहा ।। जल केशर करपूर मिलाय, गंधसों पूजौं श्रीजिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥ पांचों॥२॥ ॐ ही पचमेरुसम्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनविम्वेभ्यो चन्दन निर्वपामीति स्वाहा । अमल अखंड सुगंध सुहाय, अच्छतसौं पूजौं जिनराय । महासुख होय, देखे नाथ परमसुख होय ॥ पांचों॥३॥ ॐ हीं पचमेन्मन्बन्धिजिनचैत्यालयस्थजिनविम्बेभ्यो अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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