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________________ ना पाठ छठ པ་ पंचमेरू का अघ आठ दरवमय अर्घ बनाय. यानत पूजों श्रीजिनराय । महा सुख होय, देखे नाथ परम सुख होय ॥ पांचों मेरु असी जिन धाम, सत्र प्रतिमाको करों प्रणाम । महासुख होय. देखे नाथ परम सुख होय ॥ हो पंचमी निवैयात्यन्य-निकिन्यो भयं । नन्दीश्वरद्वीप का अर्घ यह अरघ कियो निज हेतु तुमको अरपतु हों । यानत कोनों शिव खेत भूमि समरपतु हों ॥ नन्दीश्वर श्रीजिनधाम घावन पुंज करों । वसु दिन प्रतिमा अभिराम आनन्दभाव घरों ॥ ३ ॥ ही भी पूर्ण दक्षिणपश्चिमोत्तरं दिवचानजिनालयस्थ जिनप्रतिमाम्यो अननिरानीति स्वाहा । दशलक्षण धर्म का अर्ध आठों द्रव्य संवार, द्यानत अधिक उछाह सों । भव आताप निवार, दशलक्षण पूजों सदा ॥ ४ ॥ टीम माव, भार्जव, मल, शौच, सयम, तप, त्याग, आकिंचन, ब्रह्मचर्य यो निर्वपामीति स्वाहा। स्त्वत्रय का अर्थ आठ दरव निरधार, उत्तमसों उत्तम लिये | जन्म रोग निरवार, सम्यकरतनत्रय भजों ॥ ५ ॥ ॐ अष्टांग सम्यग्दर्शनाय अष्टविभसम्यग्ज्ञानाय, श्रयोदशप्रकारसम्यक चारित्रायऽपं ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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