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________________ जैन पूजा पाठ सग्रह - चौपाई-फइक दिन पुनि ऐसे गये, वन्धुमती तब यूं व कहे। तोहि गुवाल्या ते कहि जाय, दोय चुहारी तो दे लाय तिलकमती आरे करि लई, रात्रि भये निज पतिपै गई । करि क्रीड़ा सुख वचन उचार, नाथ सुणूं अरदास हमार " जुगल बुहारी मेरी माय, जाची हैं तुमपै हरपाय। पाते ला दीज्यो तुम देव, अङ्गी कीन्हू भूप स्वमेव ।। । समा जाय बेख्यो तब राय, स्वर्णकार तब सार बुलाय। । तिनत कही बुहारी दोय, अब करो जो उत्तम होय।। इम सुनि तवहीं कश्चनकार, लागि गये गढ़ने अधिकार । स्वर्णसींक सबके मन मोहि, रन जड़ित मूख्यो अति सोहि ।। । पोड़श भूषण और मंगाय, डापा में धरि चाल्यो गय। एक वेश उत्तम करि लियो, रजनी समय नारि ढिग गयो । रतन जड़ित की कोर जु सार, शोभै सारी के अधिकार । । भूपण वेश दये नृप जाय, दोय बुहारी लखित सुहाय ॥ ' नारि चरण नृप के तब धोय, सिरकेशनि से पूछत धोय । क्रीड़ा करि बहुते सुख पाय, प्रात भये नृप तो परि जाय । । तिलकमती अति हर्पित होय, जाय दई सु बुहारी दोय। '. और दिखाये भूषण वेश, माहीं देख्यो सार जु वेश ।।, • मन में दुःखित वचन इमि कह्यो, तेरो भरता तस्कर भयो। राजा के भूषण अरु वेश, लाय दये तोकू जु अशेष ।। हम सरकू दुःखद्यासी सोय, इम काहि खोसि लये दुःखि होय । .: यह दलगीर भई अधिकाय, रात वि पति सों कहि जाय ।।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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