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________________ ४२६ जैन पूजा पाठ सग्रह मैं निशि-निशि आस्यू तुझि पास, तू तो महा शर्म की राशि । तिलकमती पूछ सिरनाय, कहा नाम तुम मोहि बताय ॥ राजा गोप को निज नाम, इम सुणि तिय पायो सुखधाम । यू कहि अपने थानिक गयो, तवसे ही परमात सु भयो । वन्धुमती कहि कपट विचार, तिलकमती है अति दुःखकार । व्याह समय उठि गई किनि थान, जन जनसे पूछे दुःखमान ।।. 'दोहा-देखो ऐसी पापिनी, गई कहां दुःखद्याय । ढढत-दढ़त कन्यका, लखी मसाणां जाय ॥३०॥ जाय कहै दुःखदा सुता, इनिथानिक किमि आय। भूत प्रेत लागो कहां, ऐसी विधि बतलाय ॥११॥ चौपाई-तिलकमती भापै उमगाय, तैं भाख्यो सो कीन्हूं माय । पन्धुमती कहि त्वग पुकार, देखो तो इह असत्य उचार । जानं कहा को इह आय, व्याह समै दुःख दिया अघाय । तेजोमती विवाहित करी, सावा की समये नहिं टरी ॥ पुनि भाषी उठि चल घर अवै, ले आई अपने घर जौ । तिलकमती सों पूछ मात, तै कैसो वर पायो रात ।। सुता कह्यो परियो हम गोप, रैनि परणि परमात अलोप । बन्धमती भापी ततकाल, री ! तैं वर पायौ गोपाल । ' दोहा-घर इक गेह समीपथो, सो दीन्हों दुःखपाय । नित प्रति रजनी के विषै, आवै तहां सुराय ॥ ६६ ॥ दीप निमित्त नही तेल दे, तबही अन्धेरे मांहि । . . राजा तैठेही रहै, सुख पावै अधिकांहि ।। ६७ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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