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________________ 4- move ज्यों चन्दनतरु बोलहि मोर, डरहिं भुजंग लगे चहुंओर ॥ तुम निरखत जन दीन दयाल, संकटतै छुटै तत्काल । ज्यों पशुघेर लेहिं निशि चोर, तेतज भागहिं देखत भोर॥ तू भविजन तारक किमिहोहि,ते चितधार तिरहिं ले तोहि। यह ऐसे कर जान स्वभाव,तिरहिं मसक ज्यों गर्भित वाव॥ जिह सब देव किये वश बाम, तैं छिनमें जीत्यो लोकाम। ज्यों जल करै अगनिकुल हान, बड़वानल पावै सो पान॥ तुम अनन्त गरवागुण लिये, क्योंकर भक्ति धरौं निजहिये। है लघुरूप तिरहिं संसार, यह प्रभु महिमा अगम अपार। क्रोध निवार कियो मन शांत, कर्मसुभट जीते किहि भांत। . यह पटतर देखहु संसार, नील विरछ ज्यों दहै तुषार ॥ मुनिजन हिये कमल निज टोहि,सिद्ध रूप समध्यावहिंतोहि कमलकरणिका बिन नहिं और,कमल बीज उपजनकी ठौर॥ जब तुव ध्यान धरै मुनि कोय, तब विदेह परमातम होय। जैसे धातु शिलातनु त्याग, कनकस्वरूप धवै जब आग ।।. जाकेमन तुम करहु निवास,विनशि जाय क्यों विग्रह तास। ज्यों महन्त बिच आवै कोय, विग्रहमूल निवारै सोय॥ करहिं विबुध जे आतमध्यान, तुम प्रभावतें होय निदान।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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