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________________ कल्याणमन्दिर स्तोत्र भाषा दोहा-परमज्योति परमात्मा, परमज्ञान परवीन। बन्दू परमानन्दमय, घटघट अन्तर लोन ॥१॥ निर्भय करन परम परधान, भवसमुद्र जल तारण यान। शिवमंदिर अपहरण अनिन्द, बंदहुँ पासचरण अरविन्द। कमठमान भञ्जन वरवीर, गरिमा सागर गुण गम्भीर । सुरगुरु पार लहैं नहिं जास, मैं अजान जपहूं जस तास। प्रभुस्वरूप अति अगम अथाह, क्यों हमसेती होय निवाह । ज्यों दिन अन्ध उलूकोपोत,कहि न सकै रवि-किरण उदोत मोहहीन जानै मलमाहिं, तोह न तुम गुण वरणे जाहिं। प्रलय पयोधि करै जल बौन,प्रगटहिरतनगिनैतिहिंकौन। तुम असंख्य निर्मल गुणखान, मैं मतिहीन कहूं निज बान। ज्यों बालक निज बांह पसार, सागर परमित कहै विचार । 'जे जोगीन्द्र करहिं तपखेद, तऊ न जानहिं तुम गुणभेद। भक्तिभाव मुझ मन अभिलाष,ज्यों पंछी बोलैं निजभाष ॥ 'तुमजस महिमा अगम अपार, नाम एक त्रिभुवन आधार । आवै पवन पदमसर होय, ग्रीषमतपत निवार सोय ॥ तुम आवत भविजन घटमाहि,कम निबंध शिथिल है जाहि।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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