SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन पूजा पाठ मण्ड इन्द्रादिक गणपति थके, कर विनती भगवान । अपनो विरद निहारिक, कीजै आप समान ॥१८॥ तुमरी नेक सुदृष्टित, जग उतरत है पार । हाहा हन्यो जात हों, लेक निहार निकार ॥१६॥ जो में कहहूँ औरसों, तो न सिट उरभार । मेरी तो तोलों बनी, तातें करों पुकार ॥२०॥ वन्दौं पांचो परमगुरु, सुर गुरु वन्दत जास। विधन हरण महल करण, पूरण परम प्रकाश ॥२१॥ चौबीसों जिनपद लमों, लमों शारदा माय । शिवमग साधक लाधु नसि, रच्यो पाठ सुखदाय ॥२२॥ पुप्पाजलि विपेत। श्री शान्तिनाथ स्तुति मत्तगयन्द ( सवैया ) शांतिजिनेश जयौ जगतेश, हरै अघताप निशेशकी नाई। सेवत पाय सुरासुरराय, नमै शिरनाय महोतलताई ॥ मौलि लगे मनिनील दिपे, प्रभुके चरणो झलके वह झांई। सूघन पाय-सरोज-सुगन्धिकिधौ चलि ये अलिपङ्कति आई ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy