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________________ २६२ जैन पूजा पाठ सप्रह क्षमावणी-पूजा [ कवि मल्लजी ] छप्पय अंग क्षमा जिन-धर्मतनो दृढ़-मूल वखानो । सम्यक रतन सँभाल हृदयमे निश्चय जानो ॥ तज मिथ्या विष- मूल और चित निर्मल ठानो । जिनधर्मीसो प्रीत करो सब पातक भानो ॥ रत्नत्रय गह भविक जन जिन-आज्ञा सम चालिये । निश्चय कर आराधना करम-रासको जालिये ॥ ॐ ह्रीं सम्यक्रत्नत्रय ' अत्र अवतर अवतर संवौपट् । ॐ ह्रीं सम्यक्रूरत्नत्रय । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ' ठ । 1 1 ॐ ह्रीं सम्यकूरत्नत्रय । अत्र मम सन्निहितं भव भव वपट् । नीर सुगंध सुहावनो, पदम-द्रहको लाय । जन्म-रोग निरवारिये, सम्यक्रूरतन लहाय ॥ क्षमा गहो उर जीवड़ा, जिनवरे - वचन गहाय | ॐ ह्रीं नि शंकितागाय नि काक्षितागाय निर्विचिकित्सतां - गाय निर्मू ढवांगाय उपगूहनागाय सुस्थितीकरणाङ्गाय वात्सल्यगाय प्रभावनाद्गाय जन्ममृत्युविनाशनाय सम्यग्दर्शनाय जलं ॐ ह्रीं व्यंजनव्यजिताय अर्थसमग्राय तदुभयसमग्राय कालाध्ययनाय उपाध्यानोपहिताय विनयलब्धिप्रभावनाय गुरुबाधाह्नवाय बहुमानोन्मानाय अष्टाङ्गसम्यग्ज्ञानाय जल निर्वपामीति स्वाहा । ॐ ह्री अहिसामहाव्रताय सत्यमहाव्रताय अचौर्यमहाव्रताय ब्रह्मचर्यमहाव्रताय अपरिग्रह महात्रताय मनोगुप्तये वचनगुप्तये कायगुप्तये ईर्ष्यासमितये भाषा समितये ऐषणासमितये आदाननिक्षेपणसमितये प्रतिष्ठापनसमितये त्रयोदशविधसम्यक्चारित्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ केसर चंदन लीजिये, संग कपूर घसाय | अलि पंकति आवत धनी, वास सुगंध सुहाय ॥ क्षमा
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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