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________________ 31 . - आग्ता नवरतवनमस्तलमग्न दोप, त्वत्स..थापि जगतां दरिनानि हन्ति । दूरे नहमकिरण कुम्ने प्रव पद्माकरेप जलजानि विकालभाति ॥६॥ नात्यदभुत भुवन भूषण उतनाय । धृतगण विभग्नमभी टुम्त , तुल्या सबंनि भवनो ननु तेन कि का भत्यापित प त नामल गेति ॥१०॥ हवामपन्तसनिलेपविलोसनीय नान्या तोयमुपयाति जनन । पीत्वापय शशिकल्य-निपनियो क्षारं जल जलनिधे रसिक इन्छेत् ॥११॥ ये. शानरागचित परमाणुसिम्त्व निर्मापित-त्रिभुवनक ललापस्त । तावन्त एव खलु तेऽप्रणवः पृथिगं. यत्ते समानमपरं न हि रुपमरित ॥२॥ वक्त्रं क्व ते सुरनरोरगनेत्रहार निःशेषनिर्जितजगत्रितयो गाना
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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