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________________ १८८ जन पूजा पाठ सप्रह ॐ ही महारिपुयुद्धे जयदायकाय श्री आदि परमेश्वराय मधं निर्बपामीति स्वाहा ॥४३॥ ॐ हीं महासमुद्र चलित बातमहादुर्जय भय विनाशकाय श्री जिनादि परमेश्वराय अ० ॥४॥ ॐ ही दग प्रकार ताप जलधराष्टादश कुष्ट सनिपात महद्रोग विनाशकाय परमकामदेवरूप प्रकटाय श्री जिनेश्वराय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४५ ॥ ॐ ही महाबन्धन आपाद कण्ठ पर्यन्त वैरिकृतोपद्रव भय विनाशकाय श्री आदि परमेश्वराय अर्घ निर्वपामीति म्वाहा ॥ ४६॥ ॐ ह्री सिंह गजेन्द्र राक्षस भूत पिशाच शाकिनी रिपुपरमोपद्रव भय विनाशकाय श्री जिनादि परमेश्वराय अर्घ निर्धपामीति स्वाहा ॥ ४५ ॥ ॐ ही पठक पाठक श्रोता पा श्रद्धावान मानतुझाचार्यादि समस्त जीप कल्याणदायक श्री आदि परमेश्वराय अचं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४८॥ वन सुगंध सु तन्दुल पुष्पकैः प्रवर मोदक दीपक धूपकैः । फल वरैः परमात्म पदप्रदं, प्रवियजे श्रीआदि जिनेश्वरम् ॥ ॐ हीं अष्ट चत्वारिंशत्कमलेभ्य पूर्णाघ निर्वपामीति स्वाहा । जयमाला। श्लोक-प्रमाणद्वय कर्तारं स्यादस्ति वाद वेदकं । द्रव्यतत्व नयागार मादिदेवं नमाम्यहम् ॥ छन्द। आदि जिनेश्वर भोगागारं, सर्व जीववर दया सुधारं । .. परमानन्द रमा सुखकन्दं, भव्य जीव हित करणममन्दं ॥२॥ : परम पवित्र वंशवर मण्डन, दुःख दारिद्र काम बल खण्डन । वेद-कर्म दुजेय बल दण्डन, उज्ज्वल ध्यान प्रप्ति शुभ मण्डन ॥३॥ चतु अस्सीलक्ष पूर्व जीवित पर, धनुष पञ्च शत मानस जिनवर। हेमवण रूपौध विमल कर, नगर अयोध्या स्थान व्रत धर ॥४॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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