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________________ पूजा पाठ संद भाषा दर्शन पाळ प्रभु पतितपावन में अपावन, चरण आयो शरणजी। यो विरद आप निहार स्वामी, मेट जामन सरणजी॥ तुम ना पिछान्यो आन मान्यो, देव विविध प्रकारजी। या बुद्धि सेती निज न जान्यो, भ्रमगिन्योहितकारजी। सव विकट वनमें करम वेरी, ज्ञान धन मेरो हस्यो। तव इष्ट भूल्यो भ्रष्ट होय, अनिष्ट गति धरतो फियो। धन घड़ीयो धन दिवसयो हो, धन जनम मेरो भयो। अव भाग मेरो उदय आयो, दरश प्रभुको लख लयो। छवि वीतरागी नगन मुद्रा, दृष्टि नासा धरै। वसुप्रातिहार्य अनन्त गुण जुत, कोटि रवि छविको हरैं। मिटगयो तिमिर-मिथ्यात मेरो, उदय रवि आतम भयो। मो उर हरप ऐसो भयो, मनु रङ्ग चिंतामणि लयो। Tथ जोड़ नवाय मस्तक, वीनऊँ तुव चरणजी। .८ त्रिलोकपति जिन, सुनहु तारण तरणजी। नहीं सुरवास पुनि, नर राज परिजन साथजी । जाचहूँ तुव भक्ति भव-भव, दीजिये शिवनाथजी ।।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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