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________________ १६६ जैन पूजा पाठ संग्रह ले तन्दुल अमल अखण्ड, थाली पूर्ण भरो । अक्षय पद पावन हेतु, हे प्रभु पाप हरो ॥ बाड़ा केο ॐ ह्री श्री पद्म प्रभु जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ ले कमल केतुकी बेल, पुष्प धरू आगे । प्रभु सुनिये हमारी टेर, काम कला भागे ॥ वाड़ा के० ॐ ह्री श्री पद्म प्रभु जिनेन्द्राय कामवाणविध्वसनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥ नैवेद्य तुरत बनवाय, सुन्दर थाल सजा । मम क्षुधा रोग नश जाय, गाऊँ वाद्य बजा ॥ बाडा के० ॐ ह्री श्री पद्मप्रभु जिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ हो जगमग जगमग ज्योति, सुन्दर अनयारी । ले दीपक श्रीजिनचन्द, मोह नशे भारी ॥ बाडा के० ॐ ह्री श्री पद्म प्रभु जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥ ले अगर कर्पूर सुगन्ध, चन्दन गन्ध महा | खेवत हों प्रभु ढिग आज, आठों कर्म दहा ॥ बाड़ा के० ॐ ह्री श्री पद्मप्रभु जिनेन्द्राय श्रष्टकर्मदहनाय धूप निर्वपामीति स्वाहा ॥ ७ ॥ हरे । श्रीफल बादाम सु लेय, केला आदि फल पाऊँ शिव पद नाथ, अरपूं मोद भरे ॥ बाडा कै० ॐ ह्री श्री पद्मप्रभु जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८ ॥ जल चन्दन अक्षत पुष्प, नेवज आदि मिला । मैं अष्ट द्रव्य से पूज, पाऊँ सिद्ध शिला ॥ बाड़ा के० ह्री श्री पद्म प्रभु जिनेन्द्राय श्रनपदप्राप्तये अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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