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________________ शीतलनाथ अनन्त जिन सम्भव जिन अभिनन्दजी। बीस टोंक पर बीस जिनेश्वर भाव सहित नित बन्दजी॥ ॐ हो पो सम्मेद शिखर सिद्धदेन परवत सेती वीस नाररादि असख्यात मुनि मुक्ति पधारे, अर्धम्। कवित। शिखर सम्मेदजी के बीस टोक सब जान । तासों मोक्ष गये ताकी संख्या सब जानिये ॥ चउदासे कोड़ा कोडि पैसठ ता ऊपर । जोडि छियालिस अरब ताको ध्यान हिये निये ॥ बारा सै तिहत्तर कोड़ि लाख ग्यारा से बैथालीस। और सात सै चौतीस सहस वखानिये ॥ सैकडा है सातसै सत्तर राते हुए सिद्ध । तिनकू सु नित्य पूज पाप कर्म हानिये ॥ दोहा-बीस टोंक के दरश फल, प्रोषध सख्या जान । एकसौ तेहत्तर मुनी, गुण सठ लाख महान ।। पत्ता छन्द। ए बीस जिनेश्वर नमत सुरेसुर मघवा पूजन कू आवै। नरनारी ध्यावै सब सुख पावै रामचन्द्र नित सिर नावै॥ इति पुष्पांजलि क्षिपेत् ।
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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