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________________ मन मोहन मोदक आदि, सुन्दर सय घने । रस-पूरित प्रासुक स्वाद. जजत कुधादि हने || चौबीसों०॥ ही मादिपोते भारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ५ ॥ तम खंडन दीप जगाय, धारों तुम आगे । सब तिमिर मोह क्षय जाय, ज्ञान कला जागे ॥ चौवीसों ० ॥ ॐ मोहासकारविनागनाथ दीपं निर्वपामीति स्याहा ॥ ६ ॥ दश गन्ध हुताशन- मांहि, हे प्रभु खेवत हों । मिस धूम करम जरिजाहिं, तुम पद सेवतहों ॥ चोवीस ० ॐ श्रीरादिना निपानीति स्वाहा ॥ ७ ॥ शुचि पक सुरस फल सार. सब पातुके ल्यायो । देखत हग-मनको प्यार, पूजत सुख पायो ॥ चौबीसों ० भी की नामीति ॥ ८ ॥ जल-फल आठों शुचि-सार, ताको अर्घ करों । तुमको अरपों भवतार, भवतरि मोच्छ वरों ॥ चौवीसों० ॐ ही श्रीकृपादित अर्थ पानीति स्वाहा ॥ ९ ॥ जयमाला दोहा । श्रीमत तीरथनाथ- पद, माथ नाय हित हेत । गाऊं गुणमाला अवे, अजर अमर पद देत ॥ १ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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