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________________ ८६ समुच्चय चौबीसी पूजा वृषभ अजित संभव अभिनन्दन, सुमतिपदम सुपास जिनराय चंद्र पुहुप शीतल श्रेयांस नमि, वासुपूज्य पूजित सुरराय ॥ विमल अनंत धर्म जस उज्ज्वल, शांति कुंधु अर मल्लि मनाय मुनिसुव्रत नमिनेमि णर्श्वप्रभु, वर्द्धमान पद पुष्प वढाय ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरातचतुविशति जिनसमूह । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहापीगंत चतुविशतिजिनममूह । ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिमहावीरातचतुविशतिजिनसमूह । अत्र मम तन्निहितो भव भव वषट् ॥ अत्र अवतर अवतर तवौषट् । अत्र तिष्ठ तिष्ट ठ मुनि-मन-सम उज्ज्वल नीर, प्रासुक गंध भरा । भरि कनक कटोरी धीर दीनी धार धरा ॥ चौबीसों श्रीजिनचन्द, आनन्द कन्द सही । पद जजत हरत भवफंद, पावत मोक्ष-मही ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृपभादिवीगतेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जल निर्वपामीति स्वाहा ॥ १ ॥ गोशीर कपूर मिलाय, केशर - रंग भरी । जिन चरनन देत चढ़ाय, भव- आताप हरी ॥ चौबीसों० ॥ V जैन पूजा पाठ सग्रह · ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरातेभ्यो भवतापविनाशनाय चन्दन निर्वपामीति स्वाहा ॥ २ ॥ तन्दुल सित सोम-समान, सुन्दर अनियारे । मुक्ता फलकी उनहार, पुञ्ज धरों प्यारे ॥ चौबीसों० ॥ . ॐ ह्रीं श्रीवृषभा दिवीरातेभ्यो क्षयपदप्राप्तये अक्षतान निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३ ॥ वर-कअ कदंब कुरंड सुमन सुगन्ध भरे । जिन अग्रधरों गुन-मंड, काम-कलंक हरे ॥ चौबीसों० ॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिवीरांतेभ्य. कामवाणविध्वंसनाय पुष्प निर्वपामीति स्वाहा ॥ ४ ॥
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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