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________________ [ ३६ ] जानत हो हम चाल | और कछू नहिं यह चाहत हैं, राग दोषकों टाल ॥ तुम० ॥३॥ हमसौ चूक परी सो वकसो, तुम तो कृपाविशाल । द्यानत एक बार प्रभु जगतै, हमको लेहु निकाल ॥४॥ *( ६८ ) राग ख्याल | मैं नेमिजीका बंदा, मैं साहबजीका बंदा ॥ टेक॥ नैन चकोर दरसको तरसें, स्वामी पूरनचंदा || मैं नेमिजी० ॥ १॥ छहौं दरवमें सार बतायों, आतम आनन्दकन्दा । ताको अनुभव नित प्रति कीजे, नासै सब दुख दंदा || मैं नेमिजी ||२|| देत धरम उपदेश भविक प्रति इच्छा नाहिं करंदा | राग दोष मद मोह नहीं नहीं, क्रोध लोभ छल छंदा || मैं नेमिजी० ||३|| जाको जस कहि सकैं न क्योंही, इन्द फनिंद नरिन्दा || मैं नेमि० ॥४॥ ( ६६ ) मैं निज आतम कब ध्याऊँगा || टेक || रागादिक परिनाम त्यागकै, समतासौं लौ लाऊँगा ॥ मैं निज० ॥ १ ॥ मन वच काय जोग थिर करके, ज्ञान समाधि लगाऊंगा । कब हौं क्षिपकश्रेणि चढ़ि ध्याऊँ चारिक मोह नशाऊँगा ॥ मैं निज०
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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