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________________ । ४ । नव तत्वनित आना। ताकौं देखै ताकौं जाने, ताहीके रसमें साना ॥ सो ज्ञाता० ॥१॥ कर्म शुभाशुभ जो आवत हैं, सो तो पर पहिचाना । तीन भवनको राज न चाहै, यद्यपि गाँठ दरब बहु ना ॥ सो ज्ञाता० ॥२॥ अखय अनंती सम्पति विलसै, भव तन भोग मगन ना । द्यानत ता ऊपर बलिहारी, सोई ‘जीवन मुकत' भना ॥ . (७) राग केदारो। __ सुन मन ! नेमिजीके वैन ॥ टेक ॥ कुमति नासन ज्ञान भासन, सुखकरन दिन रैन ॥ ॥सुन० ॥१॥ वचन सुनि बहु होहिं चक्री, वहु लहैं पद मैन । इन्द चंद फनिन्द पद लैं आतम शुद्धनऐन, ॥ सुन० ॥२॥ वैन सुन बहु मुकत पहुंचे, वचन विनु एकै न । हैं अनक्षर रूप अक्षर, सब सभा सुखदैन ॥ सुन० ॥ ३ ॥ प्रगट लोक अलोक सय किय, हरिय मिथ्या सैन । वचन सरधा करी द्यानत, ज्यों लहौ पद चैन ॥ सुन० ॥४॥ (८) राग मल्हार । काहेको सोचत अति भारी, रे मन ! ॥टेक॥ पूरव करमनकी थित बांधी, सोतो टरत न टारी
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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