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________________ (८०) कर्ता-माता उस्की अनपढ़ी, करे कौन जब गौर । - रोना धोना आगया, अब क्या करना और ॥ मेरे भाई० ॥ १७॥ विरोधी-स्वार्थ बुद्धि हैं ये पिना, माता उनकी कूर । जिससे भाई होगये, धन के नशे में चूर ॥ . वुरी भारत० ॥१८॥ · बहुत कहूं क्या मेरे भाई, बाल विवाह अनीत । यह कुरीत निखार कर, फैलाश्रो जग कीर्ति । दुरी भारत की राह० ॥ १६ ॥ कर्ता-भाई बात यह सत्य है, हम सब धरें जु ध्यान । तो होजावे जल्द ही, भारत का उत्थान ॥ दुरी भारत की राह० ॥ २० ॥ , भगवत से हम प्रार्थना, करते हैं धरि ध्यान । भारत की सुख शान्त का, हो जावे उत्थान ॥ वुरी भारत की० ।। २१ ॥ (भजन उपदेशी) फिरे अरसे से होता तू ख्वार दिला, देखा तुझसा तो मैंने वशर ही नहीं । जिसे नादां तू समझे हे अपना मकां, यह तू करले यकी तेरा घरही नहीं ॥ टेक ॥ जैसे
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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