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________________ ( ७६ ) विरोधी - अरे अरे अफसोस है, दुख भरा संसार । — जिसमें रोने आदि की, शिक्षा का प्रचार ॥ वुरी भारत की० ॥ १० ॥ कर्ता - पढ़ने से क्या होयगा, करना क्या व्यापार । इतना ही बस बहुत है, करना शिष्टाचार ॥ मेरे भाई का० ॥ ११ ॥ विरोधी-भ्राता लड़की एक है, देवी अति ही बाल । छोटे पन में लेगया, उसके पति को काल || वुरी भारत० || १२ || कर्ता —बड़े भाग के योगतें, आवे यह संयोग । लाड़ लड़ाकर बहू का, धनका हो उपयोग ॥ मेरे भाई० ॥ १३ ॥ विरोधी — नहीं बुद्धि विद्या कछू, नहीं जाने कुछ राह । - पढ़ता पहिली क्लास में, क्या जाने वह व्याह || बुरो भारत० ॥ १४ ॥ - कर्ता - नाई ब्राह्मण मिल सभी, घर पर आये आज । खुशी मनाते है सभी, सुनकर साज समाज ॥ मेरे भाई० || १५ || विसेबी-पढ़ी लिखी भी है नहीं, जाने न कुछ भी राह | जल्दी इतनी क्यों करी, पीछे होता ब्याह | वुरी भारत० ॥ १६ ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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