SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ३५ ) पौन । बलन अचंभा मानिया, बुझन अचंभा कौन जगमैं ||२|| जो छिन जाय सो आयमैं, निशि दिन 1 | कै काक | बांध सकै तो है भला, पानी पहिली पाल || जगमें ॥३॥ मनुष देह दुर्लभ्य है, मति चूक यह दाव । भूधर राजुलकंतकी, शरण सिताबी आव || जगमें | ४॥ ७३ राग -- ख्याल | 2 गरव नहिं कीजै रे, ऐ नर निपट गँवार ॥टेक॥ झूठी काया झूठी माया, छाया ज्यों लखि लीजै रे ॥ गरव ० || १|| कै छिन सांझ सुहागरु जोबन, कै दिन जगमें जोजै रे || गरव ॥ २ ॥ वेगा चेत विलम्ब तजो नर, बन्ध बढ़े थिति छीजै रे ॥ गरव ||३|| भूधर पलपल हो है भारो, ज्यों ज्यों कमरी भींजै रे || गरव ॥४॥ ७४ राग -- ख्याल । देख्यो री ! कहीं नेमिकुमार || टेक || नैंननि प्यारो नाथ हमारो, प्रानजीवन प्राननआधार ॥ देख्यो० ॥ १॥ पीव वियोग विधा बहु पीरी, पीरी भई हलदी उनहार । होउ हरी तबही जब भेटौं, श्यामवरन सुन्दर भरतार || देख्यो || २ || विरह न
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy