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________________ ( ५८ ) ५७ ( हुक्के का ड्रामा) हुक्केबाज - श्रहाहाहा क्या अच्छा हुका है, है कोई हुकेका पीने वाला । ( चलत) क्या हुक्का बना ये आला, भर भर पी लो तुम लाला, जो पीव इसे पिलावें, वे लुत्फ़जिंदगी पावें । विरोधी - बुरी आदत है ये भाई, मत इसकी करो बड़ाई ।. दूर दूर हो लानत लानत, क्यों बनता सौदाई ॥ यह तनको खूब जलावे, बलगम को बहुत बढ़ावे | जो मुंहको इसे लगावे, ना लज्ज़त कुछ भी पावे || हुक्केवाज --- जिसको इक चिलम पिलाई, बलगम की करी सफाई | विरोधी — दूर दूर हो लानत २ क्यों बनता सौदाई || हुक्केबाज - क्या हुक्का बना ये याला भर भर पीलो तुम लाला, जो पीव इसे पिलावें, वह अकलमंद कहलावें ॥ विरोधी- जो हुक्के का दम लावें, ले चिलम श्रागको जावें, सौ सौ गाली फिर खावें, यह मान बड़ाई पावें । हुक्केवाज -- यह कैसी बात बनाई, कुछ कहते शर्म न आई । विरोधी - दूर दूर हो लानत २ क्यों बनता सौदाई | हुक्केबाज - क्या खूब बना ये आला, गंगाजल इसमें डाला
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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