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________________ ( ५७ ) ईश्वर से लोलीन करावे, यह इसकी तासीर ॥ चलो भंगिया पियें चला भयिा पियें ॥ ११। विरोधी-(शेर) है नहीं यह भंग, कातिल अक्ल को तलवार है करती है यह बेहोश, जानो यह मुरदार है ॥ । खौफ जिनको है नरक का, वो इसे छूते नहीं। , वात सच मानो पियारे, यह नरक का द्वार है ॥ (चलत) यह सब सच्ची बातें भाइयो, भंग नरक डा। अांखें खोल जगत में देखो, लाखों काम विगारे॥ पीनेवाला-सुनकर यह उपदेश तुम्हारा, मुझे हुश्रा आनंद। लो में छोड़ी भंग आज से, ईश्वर की सौगन्द ॥ मत भंगिया पियो, मत भंगिया पियो० ॥ १२ ॥ विरोधी-भला किया यह काम आपने, दई भंग जो छोड़। और भी सबसे नियम करात्रो, कुंडी सोटा तोड़॥ मत भंगिया पियो, मत भंगिया पियो० ॥ पीनेवाला-कंडी तोडं सोटा तोड़ , भंग सड़क पर डारूं । कोई मत पीना भंग भाइयो, बारम्बार पुकारूं ॥ मत भंगिया पियो मत भंगिया पियो० ॥ १३ ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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