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________________ ( १५ ) १६ ( तर्ज - चाहे बोलो या न बोलो ) * चाहे तारो या न तारो चरणों में पड़ा हूं ॥ टेक ॥ तेरे दरश को मैं आया, मन में तुही समाया, अति दीन हो खड़ा हूं । चाहो त्यारो० ॥ १ ॥ सब जगत में फिर आया, शरना कही न पाया, तेरी शरन आ गिरा हूं । चाहे त्यारो० || २ || निज दास जान लीजे, शिव मग वताय दीजे, वन २ भटक फिरा हूं । चाहो त्यारो० ॥३॥ १७ ( गज़ल ) य प्रभू जी, अब तो हमारी इन दिनों । हैगी वेकरारी इन दिनों ॥ टेक ॥ लीजिये सुधि गरदिशे दुनियां से आरि घेरे पड़े हैं कर दिया खाना खराब, बचने की सूरत नही इन से हमारी इन दिनों । लीजि० ॥ १ ॥ गुस्सागर हा बुराज लालच से नहीं मुझ को पनाह, हो गई वन बन के तबियत की खराबी इन दिनों । लीजि० || २ || क्या करूं किससे कहूं, कहां बचके इन से जाऊं मैं, कोल्हू के बैल जैसी गति हमारी इन दिनों । लोजि || ३ || तुम को बिन जाने दयानिधि चार गति भ्रमता - ०
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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