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________________ [ ५८ ] नृत्य को धाये, बन धन गगन मझार- हो जै जै कार सो महिमा को वरदैँ || ३ || नागदत्त ऐरावत सुन्दर, सो सजि ले प्रथम पुरंदर | गये अवधि नृप नाभि के मंदिर, माया निद्रा रची हैरे प्रभु शची- लगी जब कर धरनें ॥ ४ ॥ लोचन सहल सुरेंद्र चनाये, उमंग नयन सुख धाये हृदय लिपटाय — लगै संस्तुति करनें ॥ ५॥ - १२४ - ठुमरी पीलू नरवा । भयो पावन आज जनम हमरो, है जनम हमरो, तनमन इमगे ॥ दे० अब सुरेंद्र पद को फल पायो, आन कियो दर्शन तुमगे ॥ १ ॥ बिन तुम भक्ति वृथा था यह तन, जा मैं था अस्थि न चमरो ॥२॥ तुम सेवा ते सर्वे सुग्गण, नातर कोई न दे दमरो || ३ || अब मैं अमर यथार्थ कहायो, करसी क्या दुर्जन जमसे ॥ ४ ॥ लेय जिनेन्द्र सुरेद्र चढो गज, चलद्यो सुर्गगरि पै अमरो ॥ ५ ॥ पढ़ियो हग सुखजिनगुण मंगल, हरियो भव भव को भमरो ॥ ६ ॥ १२५ - रागनी गौंड की पुर्वी ठुमरी । जनमे जिनेंद्र, आये सुरेंद्र. लेगये गिरेंद्र, पांडुक बनेंद्र, थापे शिलेद्र पीठंद्र विछायो । जन्मे जितेंद्र० ॥ टेक ॥ 1 तजि तजि विमान, सुर अनि आनि दियो नभ समान् मंडप व्हां तान, छवि निरखि परख अमर न मन भायो ॥ १ ॥ जामें लगे लाल, मोतियन की माल, गावें देव बाल, जिन गुण विशाल, लखि असम काल सुरपति फरमायो ॥ ६ ॥ भो भो सुरेंद्र, भो भो उपेन्द्र, भो भो धर्मेंद्र, सेवा यह जिनेंद्र
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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