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________________ [५७ ] भजन से भये पूज्य मुनिजन, गोतमादि महान ! भजन ही से तिरे भील जटायु, मोंडक स्वान ॥४॥ कहत नयनानंद जग में, भजन सम न निधान । भये भजन से अहंत सिद्ध, आचार्य गये निर्वान ॥५॥ ऋषभ जिन जन्म मंगल बधाई । १२२- रागनी भैरबी तथा खास धनाश्री । अवधिपुर आज कृतार्थ भयो, हे अवधिपुर आज. ॥ टेकं ॥ तजि सरवारथ सिद्धि परमारथ, दायक देव चयो । नाभि नृपति मरु देवी के मंदिर, श्रा अवतार लयो ॥१॥ , रंक भये धनवंत जगत मैं, कृपण कलेश वह्यो। ननि में नारक सुख पायो, मोपे न जाय कहो ॥२॥ जो आनंद त्रिकाल चतुर्गति, भाषी भूत भयो । सो आनंद नयन हम निरखो, आदि जिनेंद्र जयो ॥३॥ १२३-लावनी पीलू वरवा । चल मुरासुर सकल अवधिपुर, श्रीजिन जन्म न्हवन करनें ॥टेक।। हुकम सुधर्म सुरेंद्र चढ़ायो, अपने निकट कुवेर बुलायो। श्रीजिन जन्म घृतांत सुनायो, सकल संपदा सार, प्रभु पै वार लगी रौसी पग्नें ॥ १॥ चले कलप वासी सब देवा. चल भुवन पति करने सेवा । ज्योतिष अरु व्यतंर वसुभेवा, चौबीस अरु चालीस दोय बत्तीस इंद्र चाले शर ने ॥२॥ सेना सप्त सप्त विधि लाये, गज घोटक रथ पत्ति सजाये । वृष गंधर्व
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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